Wednesday, December 24, 2008

कुछ नही लिखती हूँ

उसने पुछा था
क्या बताऊँ
क्यूँ नही लिखती गजलें ,
नज्में, गीत ,मुक्तक या रुबाई
कुछ भी बात नही
शायद ज़ज्बात
ठंडे पड़ गए हैं
दर्द बढ़ के
दवा हो गया है
या शायद मेरी तकदीर का
कुछ और फैंसला हो गया है
और
कभी तो बस कुछ सूझता ही नही है
यही कहा था
पर सोचती हूँ क्या यही सच था
क्या में महसूस करना भूल गई हूँ
या फिर लिखना ही शायद
नही मैं कुछ भूली नही हूँ
कुछ भी नही
पर डर है नई यादों से
नई बातों से
डर है गर लिखा तो
वोह डर बयां हो जाएगा
डर है की
जुबान जो कह नही पाती
वो कागज़ पे उतर आया तो
मेरा दिल
कुछ लफ्जों में
नज़र आया तो


झूठ लिखना
मेरी आदत नही है
और सच लिखने की हिम्मत नही है
कागज़ पे लफ्ज़ नही
रूह रखती हूँ
इसीलिए आजकल
कुछ नही लिखती हूँ
...




2 comments:

ss said...

"या शायद मेरी तकदीर का
कुछ और फैंसला हो गया है"

"पर डर है नई यादों से
नई बातों से" असर कर गयीं|

SILKY said...

thank you shekhar