मुहब्बत तर्क की मैंने गरेबान सी लिया मैंने...
ज़माने अब तो खुश हो ज़हर ये भी पी लिया मैंने...
अभी जिंदा हूँ लेकिन सोचता रहता हूँ खल्वत में...
की अब तक किस तमन्ना के सहारे जी लिया मैंने...
उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है...
कोई कुछ मुद्दत हसीं खाबो में खो कर जी लिया मैंने...
बस अब तो दामन-ऐ-दिल छोड दो बेकार उम्मीदों
बहुत सीख सह लिया मैं ने बहुत दिन जी लिया मैंने...
साहिर लुधियानवी...
2 comments:
उन्हें अपना नहीं सकता मगर इतना भी क्या कम है...
कोई कुछ मुद्दत हसीं खाबो में खो कर जी लिया मैंने...excellent lines..thanks for making it available...carry on doing the good job!!
भई मज़ा आ गया
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