Sunday, December 14, 2008

हाँ में वही हूँ !!

क्यों मुझे तुम अनजान नज़रो से देखती हो ...
में वही हूँ जिसे कभी तुमने अपना साया कहा था...
अपने आगोश की की मचलती सी तमन्ना...
अपने दिल की आवाज़,अपना शरमाया कहा था...

हाँ में वही हूँ !! हाँ मैं वही हूँ !! हाँ में वही हूँ !!

उन दिनों जब तन्हाई की रानाई मुझे भाने लगी...
जिंदगी शायरी नज़मो में उभर के आने लगी...
हो गया एक रूह का मेरी रूह पे ग्रहण शायद ...
मेरी हर शय कागज़ पे हर्फ बन के छाने लगी...

कुछ रोज तलक हकीकत उभरने की कोशिश में...
मुझे और मेरे सोये जमीर को हिलाने लगी...
दुनिया के बेरुख लोगो के सजे तिलिस्म में ...
समाज की झूठी शाहान्शाई से डराने लगी...

ख़ुद को मैंने पहले ख़ुद से आजाद कर ...
अपनी तमन्नाओ को मुफ्त में नीलम किया...
हर भूख और हर प्यास के जोर को ...
अपने वजूद को उनकी जंजीर से बाहर किया...

हर अल्फाज़ तब मेरा आईना बन बन के गिरा...
मेरी हर एक बात लोगो के दिल पे लगने लगी...
मेरे अफकारो में सच की सूरत कुछ ऐसी बनी...
झूठ की हस्ती लोगो को जेहेनो में खलने लगी ...

मेरा आजाद जज्बा दुनिया के खाके से जुदा था
राज शाही बंदर नए नए जाल बुनने लगे...
मेरी आवाज़ को कहीं दफ़न करने की साजिश...
मुझे मेरे सच के आईने से जुदा करने लगे...

लोग मेरी तरफ़ बुरी नज़रें उठाने लगे थे...
मेरी सोच को कठघरे में लाया जाने लगा...
कुछ और जमीर फ़िर से बाज़ार में बिक गए...
मेरी नज़मो को नए अंदाज़ से पढ़ा जाने लगा...

कुछ
ज्यादा से पढ़े लोगो ने मुझे गुनेहगार कहा...
मुझपे पिंजरे से पाखी के परवाज़ का जुर्म था...
झूठ सच की शक्ल में तैरने लगा बंद कमरे में...
मुझपे सोये हुए लोगो को जगा देने का जुर्म था...

झूठ जीता झूठे लोगो की नज़रों में उस रोज भी...
सच को कुछ और दिन सकूत के नसीब हो गए...
कठघरे से निकल कर सच ने जंजीर पहनी...
जमीर के सौदे फ़िर एक बार बाज़ार में हो गए......


मेरी तमन्नाओं में कुछ एक सिलवटें बन गई...
मेरे ख्वाब सिकुड़ के कहीं कौन में जा बैठे...
अरमान उजडे हुए गुलजार की तरफ़ बढ़ गए ...
मेरे सपने मुझसे मुँह फेर कहीं दूर जा बैठे...

नहीं चाहिए मुझे चलते फिरते मुर्दा लोग...
नहीं चाहिए उनकी बिगड़ी सी तसवीरें बनी...
नहीं चाहिए बाज़ार का उठता हुआ शोर...
नहीं चाहिए मिटी हस्ती के वोग लोग धनी...

दुल्हन सी सजी दुनिया से बेहतर तो तेरे साए का वीराना...
झूठी सी दिलचस्प कहानी से बेहतर तो तेरा अफसाना...
शोखियों और रानायियो से कहीं बेहतर तेरी सादगी...
हासिल को दौड़ती जिंदगी से अच्छा दो पल का थमजाना...

फ़िर क्यों मुझे तुम अनजान नज़रो से देखती हो ...
में वही हूँ जिसे कभी तुमने अपना साया कहा था...
अपने आगोश की की मचलती सी तमन्ना...
अपने दिल की आवाज़,अपना शरमाया कहा था...

हाँ में वही हूँ !! हाँ मैं वही हूँ !! हाँ में वही हूँ !!

भावार्थ...

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए है।बधाई।

दुल्हन सी सजी दुनिया से बेहतर तो तेरे साए का वीराना...
झूठी सी दिलचस्प कहानी से बेहतर तो तेरा अफसाना...
शोखियों और रानायियो से कहीं बेहतर तेरी सादगी...
हासिल को दौड़ती जिंदगी से अच्छा दो पल का थमजाना...