Wednesday, December 24, 2008

तुम मेरे हो

जिस दिन से तुमको देखा है सनम...
बैचैन रहते हैं उस दिन से हम...
लगता है ऐसा खुदा की कसम...
तुम मेरे हो ...तुम मेरे हो...
सावन है बरसात होती नहीं...
खुल के कोई बात होती नहीं...
कैसे बताएं ये तुमको सनम...
तुम मेरे हो ...तुम मेरे हो...

शायर जो होता तो तेरे लिए...
कहता ग़ज़ल मैं कोई प्यार की ...
होता मुस्सविर तो अपने लिए ...
मूरत बनता रूखे यार की....
तस्वीर तेरी बनता मैं...
सारे जहाँ को दिखता मैं...
लेकिन में मुसाविर नहीं
है ये बात की शायर नहीं...
कैसे बताएं ये अबको सनम...
की तुम मेरे हो...तुम मेरे हो...

रातों को करवटें बदलते हैं हम...
शम्मा की मानिंद जलते हैं हम...
तुम ही बताओ की हम क्या करें...
चारो तरफ़ देखते हैं तुम्हे ...
इसमें खता क्या हमारी है...
हर शय मैं सूरत तुम्हारी है...
कलियों मैं तुम बहारो मैं तू...
इस दिल मैं तुम हो नज़रों मैं तुम...
कैसे बताएं ये तुमको सनम...
की तुम मेरे हो....तुम मेरे हो...

पाकिस्तानी शायर...








मुस्सविर जो होता तो मूर बनता ...

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