उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ ...
अल्फाजो में जो न समाया जा सके ...
गीतों में जो न गुनगुनाया जा सके...
दिल से जो न जुबांपे लाया जा सके...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जिसकी अधूरी सी प्यास नजरो में रहे...
जिसकी दिलकश मिठास अधरों में रहे...
जिसकी हर अदा ख़ास इन सजरो में रहे...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जो इन नसों में लहू बन के उतर जाए...
जो हर ख्याल-ओ-खाब में सवर जाए...
जो मेरे हर जर्रे में खुशबू सा ठहर जाए...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ...
जिसको कोई नाम भी देने से डरती हूँ...
जिसके मदहोश आगोश में सवरती हूँ....
जिसके लिए जीती हूँ उसपे ही मरती हूँ...
उस खूबसूरत एहसास को बयाँ कैसे करुँ....
भावार्थ...
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