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क्यों मुस्कुराना नहीं चाहते ये रिश्ते निभाने वाले...
क्यों ठहरना नहीं चाहते ये दूर तक जाने वाले...
जकड़ते वादों और झूठी वफाओं में है उनकी जिंदगी...
क्यों संभालना नहीं चाहते ये गम से बिखरने वाले...
तीरगी जीते हैं पर लम्हे भर की रौशनी से डरते हैं...
क्यों एक दिया नहीं जलाते अमावस में रहने वाले...
तन्हाई ओढे शब् में अश्क मय प्यालो से बहते हैं ...
क्यों दोस्ती नहीं आजमाते ये 'दोस्त' कहने वाले...
खौफ ज़माने का नहीं ख़ुद का बनाया तिलिस्म है...
क्यों मुझसे मिल नहीं जाते मुझे अपना कहने वाले...
उनकी जिद है राज रखना दिल में इक बेवफाई होगी ...
क्यों तमन्ना जी नही जाते अपने जी को मसलने वाले...
भावार्थ...
1 comment:
bahut badhiyaa!!
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