मद्धम खुशबू धीमे से गुलज़ार से निकली...
ओस में नहाई सुबह से सजी...
रंगों को ओढे बहारो सी खिली...
छू गई उस धुंध को जो अभी गीली थी...
नदी की छत से बही जो अभी नीली थी...
बूंदे निगाह भर देखने को गिरने लगी...
भंवरो की तमन्ना भी फ़िर मचलने लगी...
रेशम सी हलकी खुशबू बह निकली...
मद्धम खुशबू धीमे से गुलज़ार से निकली...
भावार्थ...
2 comments:
भई मज़ा आ गया
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Thanks buddy !!!
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