Tuesday, December 30, 2008

बे-इन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...!!!

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
दिन अधियारा और रात सर्द हो गयीं ..
आँखें हसीन मेरी जुदाई से जर्द हो गयीं...
खुशी एक एक कर सारी दर्द हो गयीं...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
तुमसे मिलने की तमन्ना और बढ़ गई...
याद तेरी हर एक जेहन में मेरे गढ़ गई...
दिल से उठी कसक आँखों में चढ़ गई...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
सिलवटे बिस्तर की चुभने लगी...
आगोश में तेरी कमी खलने लगी...
हसरतें तुझे पाने को मचलने लगी...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
लगा मेरी जिंदगी तेरी एक अमानत है...
तेरा एहसास मेरे दिल में सलामत है...
तेरी मोहब्बत भी मुझे एक इनायत है...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...
लम्हे भी सदियों से लगने लगे ...
अक्स सारे तेरे सांचे से बनने लगे...
बादल मेरी आँखों से बरसने लगे...

बेइन्तेआह तन्हाई का मौसम जब आया...

भावार्थ...

1 comment:

Puneet Sahalot said...

padhkar achha laga...
bahut achha likha hai aapne...

"आँखें हसीन मेरी जुदाई से जर्द हो गयीं...
खुशी एक एक कर सारी दर्द हो गयीं..."

"अक्स सारे तेरे सांचे से बनने लगे...
बादल मेरी आँखों से बरसने लगे..."

mere blog par aapka swagat hai.
:)

Puneet Sahalot

http://imajeeb.blogspot.com