आज बच्चो में खौफ साँस लेता है...
तीरगी उनके जेहेन में बसती है ...
दर्द के गुबार बन के युही उड़ते हैं...
बैचैनी हवा में घुल कर बहती है...
हिन्दुस्ता की सरजमी में जन्मे है जो...
स्कूलों के रास्तो पे भी सहमे हैं जो...
खेलते कूदते नहीं घरो में जमे हैं जो...
दिल की बात बोलने से भी डरे-थमे हैं जो...
मौत की सूरत नजरो में छुपा चुके हैं ये...
जिंदगी जीने के खाके बना चुके हैं ये...
लहू के रंग को सोच में सजा चुके हैं ये...
टूटी शख्शियत को अब अपना चुके हैं...
आएगा कल भी इनकी जवानी के साथ...
कहर बरप जायेगा नापाक मंसूबो के साथ...
छायेगा मातम भी कहीं धमाको के साथ...
उजड़ जायेगा मौसम भी चीखो के साथ...
मस्जिद और मन्दिर की तकरार देख चुके हैं...
ट्रेनों में लकड़ी सी जलती हुई लाश देख चुके हैं ...
मांस के चीथडो से सना हुआ बाज़ार देख चुके हैं...
सोने के चिडिया का ऐसा भी बदहाल देख चुके हैं...
भावार्थ...
1 comment:
bilkul sahi aur sateek likha hai apne ..sahi shabdon mein sachhai byaan kari hai..
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