Sunday, December 7, 2008

मेरी दास्ताँ-ऐ-हसरत !!!

मेरी दास्ताँ-ऐ-हसरत वो सुना सुना के रोये...
मुझे आजमाने वाले मुझे आजमां के रोये...

तेरी तज अदायिओं पे तेरी बेवाफयियो पे...
कभी सर झुका के रोये कभी मुँह छुपा के रोये...

जो सुनाई अंजुमन ने शब्-ऐ-गम की आप बीती...
क्यों रो रो कर मुस्कुराये कई मुस्कुरा के रोये...

कोई ऐसा अहल-ऐ-दिल हो जो फ़साने मोहब्बत...
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोये...

में हूँ बे-वतन मुसाफिर मेरा नाम है बेकसी ...
मेरा कौन है जहाँ में जो गले लगा के रोये...

मेरे पास से गुज़र कर मेरी बात तक न पूछी...
मैं ये कसी मान जाऊं की वो दूर जा कर रोये...

कभी मुझसे रूठ कर वो जो मिले थे रास्ते मैं...
मैं उन्हें मना कर रोया वो मुझे मना कर रोये...

पाकिस्तानी शायर...
(sung by Aziz Mian)
http://in.youtube.com/watch?v=HvBHhErzW3U&feature=related

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