उसने न जाने कितने समंदर दिल में छुपाये होंगे...
जब मुझसे मिल कर ये अश्क छलक आए होंगे...
उसके लबो में जान आ जाती है गमशुदा हो कर...
कितने ताले उसने थिरकते लबो पे अपने लगाये होंगे...
अंधेरे से डरती थी फ़िर भी वो मिलने आई मुझसे...
कितने चिराग यादो के उसने जेहेन में जलाये होंगे...
तनहा जो दो कदम भी चली नहीं जिंदगी की राहो में...
कोसो उसके नंगे पाव किस आस में चल आए होंगे...
लिबास में छुपे रहे उसके जो अदा और हुस्न के जलवे...
कैसे वो बे-परदा आस्तां से शहर में निकल आए होंगे ...
भावार्थ...
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