मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज़ पे...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वो नहीं रहा...
सफ़ेद संग सा मेरा अब जमीर वो नहीं रहा...
तामीर-ऐ-जेहेन मेरा अब चट्टान सा नहीं रहा...
नूर-ऐ-रूह मैं मेरे वो अब उजाला नहीं रहा...
मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज़ पे ...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वफ़ा नहीं रखता...
चेहरा बदल रहा हूँ एक शक्ल नहीं रखता...
गुरूर झलकता है अब वो अदब नहीं रखता...
मगरूर-ऐ-हासिल हूँ अब वो अक्स नहीं रखता...
मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज पे...
मुझसे नाराज है की मुझमें अब वो बात नहीं है ...
बस बेहूदगी पहेनली है अब वो संजीदगी नहीं है...
झूठे तिलिस्म बना लिए हैं अब वो सादगी नहीं है...
कितने टुकडो मैं जी रहा हूँ अब वो जिंदगी नहीं है...
भावर्थ...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वो नहीं रहा...
सफ़ेद संग सा मेरा अब जमीर वो नहीं रहा...
तामीर-ऐ-जेहेन मेरा अब चट्टान सा नहीं रहा...
नूर-ऐ-रूह मैं मेरे वो अब उजाला नहीं रहा...
मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज़ पे ...
मुझसे नाराज़ है की मैं अब वफ़ा नहीं रखता...
चेहरा बदल रहा हूँ एक शक्ल नहीं रखता...
गुरूर झलकता है अब वो अदब नहीं रखता...
मगरूर-ऐ-हासिल हूँ अब वो अक्स नहीं रखता...
मेरा माजी अपनी जवानी की दहलीज पे...
मुझसे नाराज है की मुझमें अब वो बात नहीं है ...
बस बेहूदगी पहेनली है अब वो संजीदगी नहीं है...
झूठे तिलिस्म बना लिए हैं अब वो सादगी नहीं है...
कितने टुकडो मैं जी रहा हूँ अब वो जिंदगी नहीं है...
भावर्थ...
1 comment:
मुझसे नाराज है की मुझमें अब वो बात नहीं है ...
बस बेहूदगी पहेनली है अब वो संजीदगी नहीं है...
झूठे तिलिस्म बना लिए हैं अब वो सादगी नहीं है...
कितने टुकडो मैं जी रहा हूँ अब वो जिंदगी नहीं है...nice lines infact whole of the poem is good!!
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