Wednesday, December 3, 2008

मोहब्बत कर बैठी वो !!!

मेरी शायरी-ए-रानाई से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

घुमते रहते हैं ख्याल मेरे जेहेन मैं धुएँ की तरह...
टूटते रहते हैं हर्फ़ मेरी कलम से खाबो की तरह...
रूठते रहते हैं मुझसे कागज़ छोटे बच्चो की तरह...
मेरी बेरुख आवारगी से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

कब कहाँ कौन सी बात पे रुक जाऊं नहीं पता...
कौन से ख़यालात पे कुछ लिख जाऊं नहीं पता...
कहाँ अल्फाजों मैं यु ही उलझ जाऊं नहीं पता...
मेरी डूबती शख्शियत से मोहब्बत कर बैठी वो ...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

मैं कुछ अधलिखे जर्द पन्नो के सिवा कुछ भी नहीं...
मैं इन बिखरे हुए एहसासों के सिवा कुछ भी नहीं...
मैं इन उड़ते हुए दीवाने पत्तो के सिवा कुछ भी नहीं...
मेरी अधूरी सी तस्वीर से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

मेरी शायरी-ए-रानाई से मोहब्बत कर बैठी वो...
मेरी मदहोश तन्हाई से मोहब्बत कर बैठी वो...

भावार्थ...

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