Friday, December 5, 2008

कांच के मगरूर ख्वाब मेरे !!!

कांच के मगरूर ख्वाब मेरे...
लरजते हैं मगर टूटते नहीं ...
जुदा जुदा से हैं अरमान मेरे...
रुलाते हैं मगर छूटते नहीं...

बनी राहो पे चलना नहीं...
पहचान बनाने का जूनून है...
किस्मत ख़ुद बनानी है...बेचैन रूह को कहाँ सुकून है...

रास्ते ये आसन नहीं...
कारवां बदलने लगे हैं...
होसले भी कम नहीं...
थक कर भी चलने लगे हैं...

डराने लगी है खामोशियाँ...
जब भी मैं साँस लेता हूँ...
रुलाने लगी हैं तल्खियाँ...
जब भी तेरा नाम लेता हूँ...

भावार्थ...

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