चकाचौंध,हल्ला और पागलपन...
मेरी क्रिसमस कहते लोग...
शोर के साथ नाचते लोग...
गले मिलते हाथ मिलाते लोग...
नशे में गम को भूलते लोग...
छुट्टी का मजा उठाते लोग...
रंगीनियाँ रात के साथ बढ़ रही थी...
पुराने पब में हजारो नाचते...
जोश की हर सीमा को लांघते...
पर चकाचौंध से कुछ कदम दूर...
पब के पीछे जहाँ आलीशान कारे थी...
वहां सिर्फ़ कोयले सा अँधेरा था...
असल में वहां कुछ तिरपाल से बने घर थे...
जहाँ कुछ मजदूर रहते थे...
कुछ अमीर जादे आए सफारी में सवार...
हाथो में महंगी शराब ...
बाहों में हुस्न बेहिसाब....
शोर बहुत था और उनका जोश भी...
नशा चढा...और बेहोशी भी...
तेज सफारी से शराब की बोटेल फैंकी...
कांच सीधा सोते बच्चे पे गिरा...
सोता हुआ बचपन हमेशा के लिए सो गया...
उनका क्रिसमस का मजा पूरा हो गया...
बच्चे की बिलखती माँ ,तड़पता बाप...
किसको रोये किसको चिल्लाये ...
कुछ दूर तक भागा हाफता हुआ ...
सफारी के पीछे नहीं...हस्पताल की तरफ़...
पर मौत कहाँ इंतज़ार करती है....
अँधेरा था उसके इर्दगिर्द...
पड़ी ईंट को शायद देख नहीं पाया...
बच्चे को ले कर गिरा, फ़िर उठा...
पर जिधर रौशनी थी उधर जश्न था...
और जिधर अँधेरा था उधर उसकी उम्मीद...
भागता भागता बोहिल हो गया...
मुझे नहीं पता क्या हुआ उसके बाद...
पर खौफनाक था जो भी हुआ...
मैंने किसी से मेरी क्रिसमस नहीं कहा...
भावार्थ...
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