मुझे जिससे मोहब्बत है उसको मैं अपना नहीं सकता ...
क़ैद में हूँ इन समाज की सलाखों में कुछ जता नहीं सकता...
जिंदगी भर उसके एहसास को खुदा दिल में जिन्दा रखे...
में जल रहा हूँ जिस आग में ख़ुद उसको बुझा नहीं सकता...
वहां मेरी मोहब्बत उसके जेहेन में बड़े तूफ़ान लाती है...
यहाँ इश्क के समंदर में अरमान मेरा साहिल पा नहीं सकता...
वोह मेरी हीर आँखों में रात भर नींद बन कर रहती है...
दिन भर खुली आँखों में उसके खाबो को युही बसा नहीं सकता...
कहानी में ही सही उसके लबो पे मेरा नाम तो आता है...
झूठे मूटे को ही सही में उसका नाम किसीको बता नहीं सकता...
इन साँसों में उसकी साँसों की गर्मी मैंने हर पल महसूस की है...
उसकी प्यास को अपनी रूह से मैं युही अब हटा नहीं सकता...
मुझे जिससे मोहब्बत है उसको मैं अपना नहीं सकता...
कैद मैं हूँ इन समाज की सलाखों में कुछ जता नहीं सकता...
भावार्थ...
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