Wednesday, December 3, 2008

कोई दर्पण नही है.

नही हम में कोई अनबन नही है

बस इतना है की अब वो मन नही है।


मैं अपने आपको सुलझा रहा हूँ,

उन्हें लेकर कोई उलझन नही है


मुझे वो गैर भी क्यूँ कह रहे हैं,

भला क्या ये भी अपनापन नही है।


किसी के मन को भी दिखला सके जो

कहीं ऐसा कोई दर्पण नही है।


मैं अपने दोस्तों के सदके लेकिन

मेंरा कातिल कोई दुश्मन नही है।


मंगल 'नसीम'

No comments: