मेरी छुई मुई...
नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...
धुंध कि रेशमी कोई चादर हो...सावन को ओढे कारे बादर हो...
हवा में उड़ता हो कोई पंख...
सागर में तैरता हो कोई संख...
फूंक से जैसे खुशबू हो उडी...
दिए से जैसे कि लौ हो जुड़ी...
कच्ची मिटटी का खिलौना जैसे...
बचपन का खाब सलोना जैसे...
धुप जो पत्तो से झड़ के गिरे...
बूंदे जो डालियों से बह के गिरे...
नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...
मेरी छुई मुई...
भावार्थ...
नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...
धुंध कि रेशमी कोई चादर हो...सावन को ओढे कारे बादर हो...
हवा में उड़ता हो कोई पंख...
सागर में तैरता हो कोई संख...
फूंक से जैसे खुशबू हो उडी...
दिए से जैसे कि लौ हो जुड़ी...
कच्ची मिटटी का खिलौना जैसे...
बचपन का खाब सलोना जैसे...
धुप जो पत्तो से झड़ के गिरे...
बूंदे जो डालियों से बह के गिरे...
नाज़ुक है ऐसी मेरी छुई मुई...
मेरी छुई मुई...
भावार्थ...
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