ये अजनबी लोग मुझे अपना कहते हैं...
पर तेरी याद में मेरी हस्ती सिमट जाती है...
में चाहता हूँ की इनको कुछ समझ सकूं...
हर बार उनकी याद जेहेन से मिट जाती है...
जागते ही जीने का एहसास होता है मुझे...
कहाँ नींद सुला गई मुझे याद नहीं कुछ भी...
तेरी हर एक अदा तैरती है आँखों में यु तो...
कोई सूरत कोई एहसास याद नहीं कुछ भी....
तुझे कितनी ही बार निकला है जेहेन से...
देखो ये भी मैं अब याद नहीं कर पा रहा हूँ...
हर बार तू और खालीपन बचते हैं मुझमें...
इसके सिवा कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...
निशाँ ढूढता हूँ कुछ एक कदम चलने को ...
हर बार तेरी यादें झट से उभर आती है...
फ़िर वही तेरी यादों मैं लिपटे कुछ लम्हे ...
हर चीज़ मेरी तेरी उन यादों पे रुक जाती है...
किसको सोचूँ जब किसी की पहचान नहीं रही...
किसको बोलूँ जेहेन मैं जब कोई बात नहीं....
किसको देखू जब नजरो मैं सिर्फ़ वहम रहता है...
किसको जियूं जब कोई याद ही मेरे साथ नहीं...
तू है बस तू है अफसाना भी तू हकीकत भी तू...
कुछ और नहीं एहसासों में भी, यादो में भी...
तन्हाई भी तेरी यादो की वजह से नहीं आती...
दुआओं में भी नहीं कोई, मेरी फरियादों में भी...
भावार्थ...
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Thursday, December 11, 2008
कुछ भी याद नहीं कर पा रहा हूँ...
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2 comments:
बहुत अच्छा .. लिखते रहे
achha likha hai..!keep going!
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