तकदीर एक अमीर शख्स है।
और ये जिंदगी एक गरीब बन्दा।
दोनों की राह कभी मिलती है और कभी नहीं !!!
तकदीर को जिंदगी से रूठने का हक है।
जिंदगी तकदीर को इल्जाम कैसे दे।
जिंदगी तो बस तकदीर को बद दुआ देगी !!!
तकदीर उपना रुख जिधर लेती है।
जिंदगी अपना रुख उधर मोड़ लेती है।
आख़िर गरीबी अमीरी की गुलाम ही तो है !!!
जिंदगी आज खुश है की तकदीर मेहर्बा है।
रौशनी चाँद की भी तो उधार की होती है।
उधार की चीज़ें वफ़ा के काबिल नहीं होती !!!
तकदीर जिद्दी है और जिंदगी मजबूर।
अरमान का बस कहाँ चलता है।
वरना कोई सुलेमान से फकीर क्यों बनता !!!
भावार्थ...
2 comments:
bhaiyaji ki kasam..got the idea pretty well but lack of 'appreciating' skills forces me to say that there the flow was a bit tardy. The comparison is far fetched but just to stay at my sarcastic best, lemme quote ki aisa laga jaise kisi south indian film ke gaane ka hindi version suna. Your ideas are real good man. Ignore my comments, keep writing! - Sulaiman Md Bin Hakim Ali Mortaza
Thnx for this Critical review....I liked uor comment and will try to improve upon the same. Waise this type of poetry is called "Triveni" Pioneered by Gulzaar Sahab.In this the third line is completely different assimilated from the above two lines....or to give entire new meaning to above stanza..but thnx for giving uor valauble time....
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