Wednesday, March 12, 2008

कौन जीतेगा पता नहीं मुझे।

कौन जीतेगा पता नहीं मुझे।
इंसान हौसला बुन रहा है।

और खुदा तकदीर कहीं।
कौन पायेगा उस मंजिल को।
इंसान सपने बुन रहा है।
और खुदा राह कहीं।
कौन आएगा जिंदगी में।
इंसान ख्वाब बुन रहा है।
और खुदा हमसफ़र कहीं।
कौन जाने कल क्या होगा।
इंसान जिन्दगी बुन रहा है।

और खुदा ये मौत कहीं।

भावार्थ ...

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सही लिखा है हकीकत...यही है।

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया है.

Ajay Kumar Singh said...

Thanks a lot Paramjeetji n Meetji...