कौन जीतेगा पता नहीं मुझे।
इंसान हौसला बुन रहा है।
और खुदा तकदीर कहीं।
कौन पायेगा उस मंजिल को।
इंसान सपने बुन रहा है।
और खुदा राह कहीं।
कौन आएगा जिंदगी में।
इंसान ख्वाब बुन रहा है।
और खुदा हमसफ़र कहीं।
कौन जाने कल क्या होगा।
इंसान जिन्दगी बुन रहा है।
और खुदा ये मौत कहीं।
भावार्थ ...
3 comments:
बहुत सही लिखा है हकीकत...यही है।
बहुत बढ़िया है.
Thanks a lot Paramjeetji n Meetji...
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