रूठ कर यू तो उसने मुझसे।
मेरे लिखे ख़त फाड़ दिए सारे।
और हर तोहफा फैक दिया था।
थक कर वफाओ के बोझ से।
मेरे साए का एहसास भी।
उसने जैसे उतार दिया था।
वो माथा, वो कपोल, वो लब।
नहीं बचे मेरा कोई निशाँ बाकी।
जिस्म उसने यू धुल लिया था।
बातें, सौगातें, वो तनहा राते।
हाथ में हाथ थे , जाँ में जाँ थी।
सारी यादो को उसने भुला दिया था।
फिर भी बच गया था अंश कोई।
शायद मेरा सोचकर आख़िर उसने।
खंजर अपने दिल के पार किया था।
भावार्थ...
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