वो जब अपनों की भीड़ कहीं गुम थी ।
तुझको ही मैंने फ़िर यहाँ खड़ा पाया था।
जब दर-ब-दर की ठोकरे लगी मुझे तू।
तुने ही तू मेरा आशियाना बसाया था।
मेरे सर को गोद में रख के तुने।
कई बार मेरे बालो को सहलाया है।
थकी जिंदगी की उन गमजीन शामो को।
तुने मुझे गुनगुना के सुलाया है।
मेरी बक बक को तुने घंटो सुना ।
उड़ती रही तू मेरे सपनों की उड़ान में।
मेरी पसंद को तुने अपना बनाया।
रंग भर दिए तुने मेरे हर अरमान में।
वोही ''तन्हाई'' मुझ से कहती है।
उसे छोड़ में हमसफ़र ढूढ़ लूँ ।
उसका वजूद तू सिर्फ़ एहसास है।
किसी इन्सां संग दिल जोड़ लू।
भावार्थ...
1 comment:
Kabhi khusi ke bhi get gao.
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