मेरी गम-ऐ-जिंदगी का आरिज़ा सिर्फ़ तेरा एहसास है।
मेरी बयाज़-ऐ-हस्ती में एक तेरा बाब ही ख़ास है।
तू राबिता मेरी शक्शियत से रखना मेरे गुमनाम रकीब ।
खलिश ख़ुद-ब-ख़ुद मिट जाती है तू ऐसा एहसास है।
यू तो ख्वाजा के नूर से मुनव्वर है ये हिलाल मगर।
टिमटिमा रही जिससे हर रूह उस जिया की तलाश है।
तन्हाई के पतझड़ ने तो मुझे कब का उखाड फैका था।
जिंदगी को गुमान था उसके गुलज़ार में एक तू पलाश है।
चांदनी रोज मीलो चल के आती है तेरा दीदार करने को।
त-उम्र उससे फासले कम न हुए जो मेरे दिल के पास है।
भावार्थ...
Words: aariza: Compensate, bayaaz-e-hasti: Diary of life, baab-chapter, Raaabita-Contact, Munnavar: Luminous, Hilaal-New Moon, Jiya-Light.
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Wednesday, March 12, 2008
मेरी गम-ऐ-जिंदगी का आरिज़ा तेरा एहसास है।
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