यू जुदाई बरसी उस रोज।
की तन्हाई टपकने लगी हर सू।
ख्यालो का कोहरा छाने लगा।
याद ही बस गई तेरी हर सू।
में डरता हूँ डूबने से।
अपनी अदो से कहो छुप जाए।
मेरा कैद में दम घुटता है।
कैशुओ से कह दो की बह जाए।
तू ख़ुद नहीं आती आगोश में।
अपने एहसास को भेज देती है।
तू ख़ुद नहीं कुछ कहती।
इन अल्फजो को बुन देती है।
तेरे अक्स का नशा नहीं उतरता।
मैंने कितने आईने तोड़ देखे।
तू मेरी रूह से जुदा नहीं होती।
कितने खंजर दिल में भौंक देखे।
क्यों तेरे वादे लहू बन के बहते है।
तेरी हर उम्मीद मेरी साँस बन बैठी है।
क्यों तेरा अरमान आखों में तैरता है।
क्यों तेरी मुस्कान मेरी जा बन बैठी है।
तू आज दफ़न होगी।
ये लोग मुझे क्यो कब्रगाह ले आए हैं।
तेरे यहाँ तू कोई नहीं रोता।
क्यों मेरे यहाँ मातम के साए है।
ये अंजाम भी क्या खूबसूरत है।
लोग जिसको इश्क कहते है।
मेरी आँखे यहाँ रोती है और ।
उसकी निगाहों में अश्क बहते है।
भावार्थ...
4 comments:
ये कविता भी क्या खूबसूरत है।
Thanx Unmukt...
Umdaa.
Thanks Anurag JI.....
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