Monday, March 3, 2008

मेरे अरमान खुल के जीने को जिद करते थे तो !!!

मेरे अरमान खुल के जीने को जिद करते थे तो।
में हर बार उनको सपने दिखा कर सुला देता था।

पर वह उनका बचपन था, उनमें नादानी थी।
पर अब वो जवा हैं, आसनी से नहीं बहलते।

मुझको आगाह करते हैं ,की में किस राह जा रहा हूँ।
क्यों उनको दबा दूसरो की उमीदों को जिए जा रहा हूँ।

मुझ पे जवाब नहीं बनता तो में झल्ला जाता हूँ।
उनको समझा नहीं पाता तो में सहम जाता हूँ।

कैसे बताऊं की उनको जीने का हक बाद में है।
जिम्मेदारिओं का मुझ पर कर्ज है।
मुझको उनके लिए जीना है जो मेरे लिए जिए है।
उनको हो सकता है अनाथ बनना पड़े।

वो अपनी धौंस दिख कर मुझे डराते हैं।
कहते है की उनकी मेरे दिमाग से पैठ है।
अगर में नहीं मानूँगा तो मुझे सतायेंगे।
मेरी जिम्मेदारी निभाते वक्त मुझको रुलायेंगे।

इसलिए हमेशा हम जैसे लोग
यहां फ़ुट फ़ुट कर रोते हैं।
उमीदो को जीने की खातिर
अपने अरमानों को खोते हैं।।


भावार्थ ...

2 comments:

sarita said...

By God bhaiji .. tarif ke liye shabd nahi hai...

Ajay Kumar Singh said...

Thanx a lot bhabhi !!!