Tuesday, March 11, 2008

ये जिंदगी मेरी तो खुली किताब सी है।

ये जिंदगी मेरी तो खुली किताब सी है।
कहानी इसमें तेरी हर एक याद सी है।

सब तलक इसकी हर एक बात पढू में ।
लफ्जों से बुनी है एक फरियाद सी है।

बीच में मुड़े मुड़े से ये कुछ एक पन्ने।
जैसे तेरे रूठने की अदा कोई ख़ास सी है।

जिल्द इसकी तेरी दुआओं से बनी है जैसे ।
उसमें लिपटी जिंदगानी मेरी सौगात सी है।

पन्नों की फड-फाड़ाहट जैसे तू आई हो।
खुशबु बह गई जैसे सरे बाज़ार सी है।

ये मोर के पंख जो कहीं दबे हुए से हैं।
तेरे दिए उन तोहफों की कोई याद सी है।

पन्नों पे पीलापन उम्र का पड़ाव हो जैसे।
जैसे ताजगी उनमें नए गुलज़ार सी है।

ये जिंदगी मेरी तो खुली किताब सी है।
कहानी इसमें तेरी हर एक याद सी है।

भावार्थ..

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