ऐ काश मैं एक बार चोर बन जाऊं।
तेरे सारे गम फ़िर जिंदगी से चुराऊँ।
दुपट्टे जो बार बार सरक जाता है।
उसको चुराके तेरे काँधे पे बिठाऊँ।
तेरे केशु जो बार बार लहरा जाते हैं।
उनो चुराके वहाँ से कानो पे सजाऊँ।
तेरे माथे पे ये कुछ एक पसीने की बूंदे।
उनको चुराके कहीं हवा में लहरऊँ।
जो सपने तेरे अरमान बन चुके हैं।
उनको चुराके क़दमों में तेरे बिछाऊँ।
तेरे बचपन की ख्वैश चाँद तारों की।
चुरा के उनको तेरे आचल में रख जाऊं।
ऐ काश मैं एक बार चोर बन जाऊं।
भावार्थ ...
1 comment:
best of luck!
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