ये दौर जो शौकत और शान का है।
ये दौर खुदा से ताकतवर इंसान का है।
ये दौर जो ऊँचे सपनो की उड़ान का है।
ये दौर जो ऊँचे ऊँचे मकान का है।
तो ये दौर कई उठते सवाल का है।
बिगड़ते हुए इंसान के हाल का है।
रिश्तो के हुए इस बद-बेहाल का है।
मौत से पहले आए उस काल का है।
यही दौर जो पैसे की बरसात का है।
दिन जैसी जगमगाती रात का है।
बीमारियों से मिली निजात का है।
हर सू छाई खुशी की सौगात का है।
ये दौर दूर तक फैली गरीब आबादी का है।
पैसे की गुलामी में छिनी आज़ादी का है।
तन्हाई से टूटे इंसान की बर्बादी का है।
अपनों से दूर कहीं रोती बूढी दादी का है।
ये दौर जो गम को मिटाती शराब का है।
हर तरफ़ बाज़ार में मौजूद शबाब का है।
रंगीन और खुशनुमा उस नकाब का है।
परोसे गए हर पकवान लाजवाब का है।
ये दौर पीने की पानी की भारी कमी का है।
ये लोगो की मानसिकता में आई कमी का है।
भूख से आई बच्चो की आंखो की नमी का है।
गंदगी में प्रसव से मरी जच्चा की गमी का है।
ये दौर .....जो अभी बाकी है
भावार्थ...
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