मैं ये सोच कर उस के दर से उठा था
कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको
कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे
के वो आवाज़ देकर बुला लेगी मुझको
हवाओं मे लहराता आता था दामन
के दामन पकड़ के बैठा लेगी मुझको
मगर उस ने रोका, ना मुझको मनाया
ना अवाज़ ही दी, ना वापस बुलाया
ना दामन ही पकड़ा, ना मुझको बिठाया
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया
यहाँ तक के उस से जुदा हो गया मैं....
3 comments:
Subhan allah!
Saala Kaifi aazmi ka naam dekher Subhaan Allah kahte ho...saala hum itne dino se likhe jaa rhe hain...ek taareef ka shabd bhi nahin foota tumhare moonh se...
abe dil ko chhoo lene wali line likhoge to shabd footenge kyun nahi. baaki tumhare apne hain?? mujhe to saari kahin se uthai lagin ;)
i started reading them recently isliye comment nahi kiya tha kabhi.
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