मेरे ख्वाबों में एक दरार पड़ गई, किसकी नज़र लगी।
प्यार में न वफ़ा पनप सकी मेरे , ये किसकी नज़र लगी।
पपीहा सावन के आस्तां से आज फ़िर प्यासा लौटेगा ।
एक बूँद पानी की नसीब नहीं हुई, ये किसकी नज़र लगी।
वो हुदूद के उस ओर खड़ी थी पर दीदार नहीं हो पाया।
ठंड में शाम तक ये धुंध नहीं छटी,ये किसकी नज़र लगी।
मेरे अश्कों की नमी रिश्तों में सीलन भर गई फिर से।
भरी गर्मी में भी धुप नहीं निकली,ये किसकी नज़र लगी।
कुछ में चलूँ कुछ वो चलेगी, उसने वादा लिया था मुझसे।
मिलकर भी वो मेरी ओर नहीं मुडी ,ये किसकी नज़र लगी।
में तू रो-रो कर उस खुदा से फरियाद करने को बैठा था।
फालिश मार गई उठने वालो हाथो में,ये किसकी नज़र लगी।
में खुश था की मेरी बद-दुआओं से उसको मौत आएगी।
लेकिन जहर उसपे कर गया असर,ये किसकी नज़र लगी।
भावार्थ...
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