हेल्प !! हेल्प !! हेल्प !! हेल्प हेल्प !!
में चिल्लाता रहा उस रोज सुबह ।
पर वो अनपढ़ मुझे(पेड़) कुल्हाडी से काटता ही रहा !!!
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ज़माने ने तुझे मुझसे न कभी मिलने दिया।
लोग ही लोग हैं, उनकी झिझक थी तुमको।
आ जाओ अब मेरी कब्र किसी वीराने में बनी है !!!
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महंगे तोहफे, हीरे के हार ही मांगती है मुझसे वो।
उसे मालूम है में बस एक चीज़ दे सकता हूँ।
पर उसको दीवानापन, पागलपन पसंद नहीं !!!
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भावार्थ...
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