एक मछली बोली प्यारी सी।
माँ मुझे सुनाओ तुम कहानी सी।
उसकी माँ बोली। बड़े दिनों की बात है।
कुछ साल गये जब इन्साँ पानी में रहता था।
बिल्कुल हमारी तरह ही वो तैरता रहता था।
एक रोज कहीं से कहीं से बड़ी सी प्यासी मछली आई।
इंसा का सारा पानी पीकर उसने अपनी प्यास मिटाई।
तरसा सा इन्साँ बेचारा हमारे पास पधारा ।
हमने झट से उसको सागर का दिया सहारा।
रह जाए यह जीवित, हम अपना संसार ले आए यहीं।
वरना हमारा था संसार जुदा, इन इंसानों से दूर कहीं।
मछली बोली, फ़िर मम्मी क्यों यह सब हमको खाते हैं।
माँ बोली इनकी फितरत तो ख़ुद खुदा समझ न पाते हैं।
डर करके प्यारी मछली तो सो गई माँ की गोद में।
न जाने यह हिंसक इन्सान आएगा कब होश में।
भावार्थ ...
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