Saturday, February 2, 2008

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत की है !!!

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत की है।

हाथ में हाथ लिए फिरे जिन रास्तों पेर।
उन्ही रास्तों ने आज हमसफ़र की शिकायत की है ।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

मेरे जिस काँधे पर रह है हमेशा तेरा सर।
उसी काँधे ने आज सहारे की शिकायत की है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

जिस मखमली रुई ने दो रूहों को महसूस किया अब तक।
आज उसी बिस्टर ने सिल्वाटों की शिक़ायत की है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

सर्दियों कि जिस धुप मैं तुमने सुने है मेरे गम सारे ।
उसी धुप ने आज परछाई की शिक़ायत कि है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

वो प्यार भरे ख़त जो तुने लिखे छुप कर मुझे ।
उन्ही खतों ने आज लिखावट कि शिक़ायत की है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

मकान से घर बन गए तुम जिसको ।
उसी घर ने आज वीराने की शिक़ायत की है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

तुमसे मिलने से पहले सवर हूँ जिस आईने मैं।
उसी आईने ने आज अजनबी की शिक़ायत की है।

मेरे आगोश ने तन्हाई कि शिक़ायत कि है।

3 comments:

peerless_thinker said...

Amazing poem, Title itself has a bundle of pain n romance, luvd readin it.

Abhishek said...

what a poem.
its realy touches the herat.
shows the pain,love,lonliness of the lover.
and finally fantastic use of words.
keep it up......

sarita said...

tareef ke liye shabd nahi .... amazing poem..