गरीबी भी पसीने में चिपक के चलती सी है लेकिन ।
यह मोहल्ले के कुत्ते हमेशा कूडा उठाने वाले पर ही क्यों भौकते हैं
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बहुत दूर से आए हैं लोग यहाँ उस मरहूम कवि को सुनने।
भीड़ के भीड़ चली आ रही है, शामियाने की तरफ़
अकेलेपन में लिखी नज्में आज भीड़ से रूबरू होंगी !!!
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शायद सारे फूल भी यहाँ खिलते होंगे रोज लेकिन।
मौत का साँसों से रिश्ता काफ़ी पुराना सा लगता है।!!!
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भावार्थ...
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