Thursday, February 21, 2008

ये जो चार दिन की कहानी है।

ये जो चार दिन की कहानी है।
मुझे तो बस ये गुन्गुनानी है।
छलकेंगे नहीं अब मेरे आँसू।
खुशी से भरी मेरी जिंदगानी है।

ये जो चार दिन की कहानी ....
आएगा जो गम का झोंका अगर।
चू भी नहीं पायेगा मुझको मगर।
मेरी सासों में छुपी हसी की फुहार।
नहीं आयेगो कोई रोती सूरत नज़र।

ये जो चार दिन की कहानी ....
न होगा कोई मेरा साथी जो अगर।
जी लूंगा सुहाना सा ये तनहा सफर।
खुशी मेरे भीटर छुपी है यहीं
क्यों जाके ढूद्हू इसको में अब बाहर।

ये जो चार दिन की कहानी ....
कुछ भी नहीं मेरा, यही तो खुशी है।
जो नहीं मेरा वो गया , यही तो खुशी है।
किसको पाऊँ तू मिले खुशी की मंजिल।
वही तो मिल गया, उसी की खुशी है।

ये जो चार दिन की कहानी है।
मुझे तो बस ये गुन्गुनानी है।
भावार्थ...

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