आज ढलते दिन की खुशी मना रहे सारे।
ये शाम का मंजर और रात के सब नजारे।
लू का गुस्सा भी कम सा हुआ है आख़िर ।
ठंडी बयार में जैसे कहीं उड़ गए हो सारे।
थका हुआ दिन सो गया सांझ के आगोश में।
गम की खलिश को जैसे भूल गए हो सारे।
शाम का बुढापा भी आ ही गया आख़िर ।
दिन की जवानी के जैसे रंग ढल गए सारे।
रात हुई और रंगीन ख्वाब जाग गए नींद से।
चांदनी घुली और कहीं से तारे उग गए सारे।
आज ढलते दिन की खुशी मना रहे सारे।
ये शाम का मंजर और रात के सब नजारे।
भावार्थ ...
3 comments:
अच्छी रचना है, अच्छा लगा पढ़कर...
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gulzaari lal 'fakeer' ki nayi rachna badhiya lagi :)
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