Thursday, February 21, 2008

मेरी उसकी तकरार ....

मुझ आवारा-ऐ-मंजिल को भुला दो !!!!

में कमाने का हुनर नही जानता।
में रिश्ते निभाना भी नहीं जानता।
में नहीं जनता प्यार जाताना।
में सपने सजाना भी नहीं जानता।

में ख्याल रखना भी नहीं जानता।
में पलके भिगोना भी नहीं जानता।
नहीं जानता में रूठे को मानना।
में इतजार करना भी नहीं जानता।

कैसे चाहोगी इस फकीर को ....

गहने नए में तुझे दे नहीं सकता ।
महलो में तुझे में रख नहीं सकता
ये धूल जामे पन्ने पड़े है सिरहाने।
इनके सिवा में कुछ पढ़ नहीं सकता ।

मुझे लोग नाकाम बुलाते हैं, सह पाओगी।
में बिखरा हूँ इसी जिस्म में, सह पाओगी।
मेरा मन मेरे काबू में नहीं रहता।
आक्रोश बरसा जो कभी यू ही, सह पाओगी।

वो बोली की मुझसे से ही प्यार करेगी...क्यों की

मेरा प्यार कोई दिखावा नहीं रखता।
मेरा साथ कोई गिले सिकवे नहीं रखता।
नही रखता में शक का शौक।
में किसी गैर का ख्याल नहीं रखता।

में उसके अस्तित्व को मान देता हूँ।
उसके नाम को एक पहचान देता हूँ।
क्या हुआ हाले फकीर है जो मेरा।
उसे में एक परी सा एहसास देता हूँ।

और फिर एक जीवन मिला है...

क्यों बिस्टर का खिलौना बन के जियूं।
क्यों रिश्तो के पाटो में पिस के जियूं।
महलों की गुडिया बनने से बेहतर है।
तुझ कवि की कविता बन के जियूं।

भावार्थ ...

2 comments:

peerless_thinker said...

great one!! aisee hi ek kavita ka intezaar hai mujhe bhi..

Ajay Kumar Singh said...

thnx Manaav !!! I wish you will find her....