मैं रोता था जब भी स्कूल को जाता था।
और रोते रोते माँ पर गुस्सा हो जाता था।
कालिख पूरी पुती नहीं, मैं क्यूँ जाऊं।
खडिया पूरी घुली नहीं , मैं क्यों जाऊं।
पट्टी पूरी चमकी नहीं, मैं क्यूँ जाऊं।
धारी उसपर खीची नहीं, मैं क्यूँ जाऊं।
ऐसे जाने कितने बहाने मैं रोज बनता था।
पर मैं रोता था जब भी स्कूल को जाता था।
मुझे पाठ याद नहीं , मास्टर जी मारंगे
मुझे पहाडे याद नहीं, मास्टर जी मारेंगे।
कुरते पे सिलवट हैं , मास्टर जी मारंगे।
बालों मैं कंघी नहीं है , मास्टर जी मारंगे।
अपनी माँ को मैं हर रोज यू ही सताता था।
पर मैं रोता था जब भी स्कूल को जाता था।
हाथ मैं कंघी लिए वह मेरी सब बाते सुनती।
हाथ थोडी पर रख , वह बस कंघी करती रहती ।
फिर मेरे आंसूओं को अपने पल्लू से हटाती थी।
नज़र से बचने को माथे पे काला टीका लगाती थी।
उस भोली को मैं अपनी हर बात बताता था।
पर मैं रोता था जब भी स्कूल को जाता था।
भूखा न रह जाऊं यही बात उसे सताती थी।
सोच यही चुपके से जेब मैं रेबडी रख जाती थी।
रोटी का लत्ता वह फटाफट थेले में रखती।
और जल्दी से दूध को थाली मैं ठंडा करती।
बड़ा हो जाऊँगा मैं ये सोच पूरा दूध पी जाता था।
पर मैं रोता था जब भी स्कूल को जाता था।
6 comments:
It broke out a storm of nostalgia and longing for childhood in me.. thumbs up.
thnx manav....
very touching!!!!
Thnx a ton bahbhi...
this poem realy brought me back to my childhood and brighten all feddish memories.
we all are away from family but we miss them n specialy mom.
keep it up,good poem
Enjoyed reading it...One thing that struck me here was the simple HINDI words used by you.. not those bhari bharkam and shudh hndi..which sometimes becomes hard to understand!!! :)really liked it... hmmm.. did feel nostalgic... but this poem depicts that you must have been a very naughty school boy!!;)pestering your mum n crying away to glory.. lol...
Keep writing such fantabulous poems man.. :)
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