Tuesday, February 19, 2008

नासमझ फ़िर वो मेरा एहसास ढूद्ता है !!!

आजकल वो ख़ुद में है जुदा जुदा सा इसकदर।
कि वो ख़ुद में अपना आज वजूद ढूढ़ता है।

बलिस्तों से नापी हैं उसने दिलो की दूरियां।
वो
रोता है तो आज आखों में आँसू ढूढ़ता है।

जो कह नहीं पाया अल्फाज़ मुझसे चाह कर भी।
हेर पल चुभने वाली वो कहीं आह ढूढ़ता है।

आज जब डूबने लगी है उसकी रूह गम में।
वो आज फ़िर वो यादों के तिनके ढूढ़ता है।


में उसमें हूँ, उसे पता भी नहीं है आजतक।
नासमझ फ़िर वो मेरा एहसास ढूढ़ता है।

भावार्थ...

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