ऐसा क्या जुर्म करूं कि सजाये मौत मिल जाये।
हो जाएँ दूर ये गम सारे और तन्हाई मिट जाये ।
पहले आत्मा का कत्ल मैंने कल रात किया।
सरे आम चाकू उसके सीने मैं भोंक दिया।
आज भरे बाज़ार में जमीर बेच बैठा हूँ।
फिर भी दुनिया ने नहीं कोई इल्जाम दिया ।
मैंने सोचा....
ऐसा क्या जुर्म करूं कि सजाये मौत मिल जाये।
हो जाएँ दूर ये गम सारे और तन्हाई मिट जाये ।
फिर मैं सपनों का गला घोंट भाग निकला
जहाँ पंहुचा वहाँ फिर वोही अरमां निकला
जूनून है यह सपनों का वादा भी इसकदर ।
हिम्मत कि अदालत में फिर से मैं पाक निकला ।
फिर सोचा ...
ऐसा क्या जुर्म करूं कि सजाये मौत मिल जाये।
हो जाएँ दूर ये गम सारे और तन्हाई मिट जाये ।
तब मैंने दोखा देने का जुर्म भी दोस्तो से किया।
छोड़ के मझदार मैं, अपने रस्ते मैं हो लिया।
दोस्त भी मेरे नेक निकले इस हद तक ।
हंस के पुरानी दोस्ती को फिर याद किया।
फिर सोचा...
ऐसा क्या जुर्म करूं कि सजाये मौत मिल जाये।
हो जाएँ दूर ये गम सारे और तन्हाई मिट जाये ।
आख़िर बेवफाई ही बची थी वह भी कर के देखी।
शक का बीज बोया प्यार में , दिल्लगी कर देखी।
उस हमसफ़र ने भी मेरे बद रूप को नहीं नकारा।
जान भूझ कर कर दे मेरी गलती कि अनदेखी ।
अब मैं सोचता हूँ....
ऐसा क्या जुर्म करूं कि सजाये मौत मिल जाये।
हो जाएँ दूर ये गम सारे और तन्हाई मिट जाये ।
4 comments:
shabad har koi jod leta hai, par bhav koi koi de pata hai.
putle har koi bana leta hai, par usme jaan koi koi de pata hai...
"Aisa kya jurm karu" is undoubtedly a wonderful creation, and has left me speechless....
Naayaab!!! Probably dis wod was designed for some such kinda creation,it defines almost every indivisual, fighting from materialism.lol
thnx manav...
Thnx Mohit...
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