कोई छोटू कहता है, कोई अठन्नी मुझे।
क्यों मेरा बचपन नाम नहीं रखता।
चाय की केतली ही मेरा खिलौना है शायद!!!
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आठ साल की केतकी की कमर पे दो तीन साल के भाई।
पासम पास का खेल में मशगूल है वो पगली लेकिन।
लड़की होने का एहसास उसकेलिए बचपन का सबक है !!!
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कभी गोले में से निकलती है, कभी मोड़ लेती है ख़ुद को।
चौराहे पे वो 'रेड लाइट' पे आपका शीशा भी चमकाती है।
बचपन की भूख कितने हुनर सिखा जाती है !!!
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भावार्थ....
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