Wednesday, February 13, 2008

भावार्थ की त्रिवेणी... पार्ट-१

मुझे शुरुआत में ही मिटा दो डॉक्टर अंकल।
कैंची ही उठा लो, बस कुछ पल ही लंगेगे।

मिटटी के तेल की जलन मुझसे सही नहीं जायेगी
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उस कवि को तो मार दिया, उन गुंडों ने सरे आम सड़क पे।
उसके सारे पन्ने भी जला दिए, घेर में ताला तोड़ कर घुस के।

बेवकूफ उनको कहाँ ढूँढेंगे जो उन पन्नों को पढ़ बैठे हैं !!!
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यह ऊँची ऊँची मंजिल बनने वाले, ज़मीन गहरी खोदते हैं।
वो जाने क्यों बार बार आ जाते हैं, नींव खोदने के लिए।

गहरी नींद में सोया मेरा महरूम दोस्त जाग जाता है!!!
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भावार्थ ...

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