Friday, February 22, 2008

उस उफक के उस पार दूर कहीं मेरी वो मंजिल है !!!

उस उफक के उस पार दूर कहीं मेरी वो मंजिल है।
बादल छुए भी नहीं अभी और ये हौंसले बोझिल है।

में
चलता हूँ रोज थक जाने के लिए उसी सागर में।
आज फिर वही मझधार और नहीं कोई साहिल है।

जीता
हूँ लाश बनके, रोज भीड़ मेरा इंतकाल करती है।
फिर भी जीने की उमीदों से भरा ये मुस्तकिल है।

खुदा जाने क्या उसकी मर्जी है ,जो छुपा रखी है।
में परेशान हूँ उसकेलिए जो नहीं मुझको हासिल है।

भावार्थ...

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