इश्क में हम कहीं के न रहे।
न यहाँ के रहे और न वहां के रहे।
गम जो चाक बन नहीं पाए।
वही सब फ़िर अश्क बनके बहे।
उसके हिज्र में लिपटे सभी लम्हे।
मैंने कूचो पे एक पागल बनके सहे।
सभी लब्ज़ आयत से बन गए मेरे।
जो इश्क में मैंने दीवाना बनके कहे।
होश में भी बेहोशी का आलम था।
जिन्दा थे फिर भी बुत बनके रहे।
इस इश्क में हम कहीं के न रहे।
न यहाँ के रहे और न वहां के रहे।
भावार्थ...
2 comments:
umdaa!
Thnx...buddy !!!
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