Tuesday, August 5, 2008

क्योंकि मैं उनसा न था !!!

लोग मुझसे कतराते रहे।
क्योंकि मैं उनसा न था।
मुझे देख मुँह फेर जाते रहे।
क्योंकि मैं उनसा न था।

मैं तो एक फ़कीर था।
न जागीर थी न जायदाद।
मेरी बातें मेरी यादें।
बस रह जायेंगी मेरे बाद।
वो मुझसे खार खाने लगे।
क्योंकि मैं उनसा न था।

सादगी और अकेलापन।
भीड़ को कहाँ नसीब था।
जिंदगी को यू देखना।
उनको कहाँ नसीब था।
वो मुझपे जोर आजमाने लगे।
क्योंकि मैं उनसा न था।

मेरे परवाज़ थे चढ़ रहे।
वोह बोझ मैं थे डूबे हुए।
मेरे अरमान थे सजे रहे।
वो घुटन मे थे दबे हुए।
वो मुझसे दूर जाने लगे।
क्योंकि मैं उनसा न था।

मैं और मेरी आवारगी।
उनको नहीं मंजूर थी।
फ़कीर की शान्ह्शाही।
उनको कहाँ मंजूर थी।
वो मुझपे संग बरसाने लगे।
क्योंकि मैं उनसा न था।

भावर्थ...

संग: पत्थर, परवाज़: उड़ान

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