Wednesday, August 27, 2008

नजराना..राहत इन्दौरी

गुलाब, खाग,दवा, जेहर, जाम क्या क्या है।
में आ गया हूँ बता इन्तेजाम क्या क्या है।

फ़कीर , शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या है।
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है।
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नए सफर का नया इन्तेजाम कह देंगे।
हवा को धुप चिराग को शाम कह देंगे।
किसी से हाथ भी छुप के मिलायी।
वरना इसे भी मौलबी साहब हराम कह देंगे।

लू भी चलती थी तो वो वादे-सबा कहते थे।
पाँव फैलये अंधेर को जिया कहते थे।
उनका अंजाम तुझको याद नहीं शायद।
और भी लोग थे जो ख़ुद को खुदा कहते थे।
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सूरज,सितारे चाँद मेरे साथ में रहे।
जब तक तेरे हाथ मेरे हाथ में रहे।

साखो से टूट जाए वोह पत्ते नहीं हम।
आंधी से कोई कह दे औकात में रहे।
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कभी महक की तरह गुलो से उड़ते हैं।
कभी धुएँ की तरह पर्वतों से उड़ते हैं।
यह कैंचियाँ हमें क्या ख़ाक रोकेंगे।
हम पारो से नहीं हौसलों से उड़ते हैं।
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राहत इन्दौरी...

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