Wednesday, August 6, 2008

जिंदगी जीने का कोई इल्हाम तो देदे खुदा।

जिंदगी जीने का कोई इल्हाम तो देदे खुदा।
कोई जजा न सही कोई इल्जाम ही देदे खुदा।

तुने ख्वाब देखने का हुनर तो दिया मगर।
उनको अब परवाज़ का हौंसला तो देदे खुदा।

इश्क का जूनून भी तुने कतरे कतरे में दिया।
मेरे यार को इक वफ़ा की सीख भी देदे खुदा।

न चिराग-ऐ-रुख है न शमा-ऐ-वादा है यहाँ।
तीरगी-ऐ-राह मिटाने को वो नूर तो देदे खुदा।

रेत की दीवार सा है मेरे अरमानो का महल ।
कोई संग तू अपनी खुदाई का उसमें लगादे खुदा।

जिंदगी जीने का कोई इल्हाम तो देदे खुदा।
कोई जजा न सही कोई इल्जाम ही देदे खुदा।

भावार्थ...

इल्हाम
: प्रेरणा,inspiration
जज्ज़ा :reward
तीरगी-ऐ-राह: रास्ते का अँधेरा,
चिराग-ऐ-रुख: चेहरे का नूर,
शमा-ऐ-वादा: उम्मीद की रौशनी,
संग: पत्थर

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