एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Friday, August 1, 2008
झिझक ...
झिझक ... एक खामोश एहसास। है जो दबा दबा है । झिझक... एक लम्बी दूरी है। पास धड़कते दिलो के बीच। झिझक... न कही गई दास्ताँ का । मिटा हुआ सा रूप है। झिझक ... उफनते अरमानो को थामे कोई डोर है। भावार्थ...
3 comments:
kisi bhi baat ko kahane ke liye
shbdaarth ko pahchannaa bahut jaroori hai jo tum bakhubi karte ho .
keep it up !!
Thanks !!! a lot...
i think u stopped in between
u could have said more!
in fact u have a lot more....
i know that...
it is really touching........good going!
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