अपनी पहचान मिटाने को कहा जाता है।
बस्तियां छोड़ के जाने को कहा जाट है।
पत्तियां रोज गिरा जाती है ये हवा।
और हमें पेड़ लगाने मको कहा जाता है।
खून आँखों के चिराग में छुपा लो।
वरना तीरगी रुखसत नहीं होने वाली।
तलवार उठा लो मेरे साथ चलना है तो।
मुझसे बुजदिल की हिमायत नहीं होने वाली।
अबके जो फैसल होगा वो यहीं होगा।
हमसे दूसरी हिजरत नहीं होने वाली।
राहत इन्दौरी...
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